सूडान: गृहयुद्ध में फंसा एक देश
सूडान, जो एक मुस्लिम-बहुल राष्ट्र है, इस समय एक अभूतपूर्व मानवीय त्रासदी और गृहयुद्ध के भयानक हालात से गुजर रहा है। अप्रैल 2023 में सूडानी सशस्त्र सेना (SAF) और एक शक्तिशाली अर्धसैनिक बल, रैपिड सपोर्ट फोर्सेज़ (RSF), के बीच शुरू हुआ संघर्ष अब पूरे देश में तबाही मचा रहा है। यह लड़ाई केवल सत्ता के लिए नहीं है, बल्कि इसने आम लोगों की जिन्दगी जहन्नुम कर दी है।
सूडान के वर्तमान हालात: मौत और तबाही का मंज़र
इस वक्त सूडान की स्थिति बहुत ही बुरी है। संयुक्त राष्ट्र रिपोर्टों और मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक:-
हिंसा और नरसंहार: दारफुर और ख़ारतूम जैसे क्षेत्रों में RSF पर नागरिकों के सामूहिक नरसंहार, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा, और अपहरण के गंभीर आरोप हैं। कई रिपोर्टें इसे "जानबूझकर किया गया जातीय सफाया" बता रही हैं, जहां गैर-अरब समुदाय (जैसे फुर, जाघावा) को निशाना बनाया जा रहा है।
अस्पतालों पर हमले: अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं को भी लक्षित किया जा रहा है, जिससे घायलों को उपचार मिलना मुश्किल हो गया है। अल फ़शर के सऊदी प्रसूति अस्पताल में कथित तौर पर सैकड़ों मरीज़ों और उनके सहयोगियों की हत्या की खबरें आई हैं।
बड़े पैमाने पर विस्थापन: लाखों लोग अपनी जान बचाने के लिए विस्थापित हो चुके हैं। उन्हें असुरक्षित और भीड़ भरे शिविरों में शरण लेना पड़ रहा है, जहां भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता की गंभीर कमी है।
खाद्य असुरक्षा: युद्ध के कारण कृषि और बुनियादी ढाँचा बर्बाद हो गया है, जिससे देश की लगभग 40% आबादी (2.4 करोड़ लोग) गहरे भूख संकट का सामना कर रही है।
सूडान युद्ध: कौन है इस जुर्म का ज़िम्मेदार?
सूडान में हो रही इस त्रासदी के लिए मुख्य रूप से दो पक्ष ज़िम्मेदार हैं:
सूडानी सशस्त्र सेना (SAF): जनरल अब्देल फत्ताह अल-बुरहान के नेतृत्व में यह सेना देश की आधिकारिक सेना है।
रैपिड सपोर्ट फोर्सेज़ (RSF): जनरल मोहम्मद हमदान 'हेमेदती' डागालो के नेतृत्व वाला यह अर्धसैनिक समूह, जिसके गहरे संबंध दारफुर के कुख्यात जंजावीद मिलिशिया से हैं, जो पहले भी कई अत्याचारों के लिए जाना जाता रहा है।
असल संघर्ष सत्ता और नियंत्रण का है। ये दोनों गुट, जो पहले साथी थे और 2021 में मिलकर तख्तापलट किया था, अब देश की सत्ता पर नियंत्रण के लिए आपस में लड़ रहे हैं। RSF को नियमित सेना में शामिल करने और भविष्य की कमान के मामले को लेकर तनाव था, जो अब एक खुले युद्ध में बदल गया है।
हालाँकि, इस संघर्ष की जड़ें पुरानी हैं, जिनमें ज़मीन पर कब्ज़ा, प्राकृतिक संसाधनों (विशेषकर तेल और सोने) पर नियंत्रण और दशकों पुरानी जातीय असमानता भी शामिल है।
सूडान युद्ध में बाहरी ताकतों की भूमिका
संघर्ष को बढ़ावा देने में कुछ बाहरी ताकतों का भी हाथ बताया जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ देशों, जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात (UAE), पर RSF को हथियार और वित्तीय मदद देने का आरोप है, जिससे यह समूह युद्ध में टिके रहने में सफल हो रहा है। इससे साफ होता है कि यह केवल आंतरिक कलह नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय हितों का भी शिकार है।
मुस्लिम समुदाय के लिए शर्म की बात?
यह एक जटिल और संवेदनशील सवाल है। सूडान एक मुस्लिम-बहुल देश है, और इसमें लड़ने वाले दोनों गुटों के नेता भी मुस्लिम हैं। पीड़ितों में एक बड़ी संख्या मुस्लिम नागरिकों की है, जिनमें मस्जिद में नमाज पढ़ रहे लोग भी शामिल हैं।
यह स्थिति किसी विशेष धर्म की "शर्म" से ज्यादा, मानवता पर शर्म की बात है। जब एक ही धर्म के लोग सत्ता के लिए आपस में लड़ते हैं और अपने ही भाइयों और बहनों (जिनमें मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों शामिल हैं) पर भयानक अत्याचार करते हैं, तो यह उस धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है जो शांति और न्याय की बातें करता है।
इस्लाम की शिक्षाएं निर्दोष व्यक्तियों (चाहे वह किसी भी धर्म के हों) की हत्या को सबसे बड़ा पाप मानती हैं।
यह स्थिति मुस्लिम जगत की सामूहिक विफलता को दर्शाती है कि वे अपने ही भाई-बहनों की रक्षा करने में असफल रहे हैं और इस बड़े मानवीय संकट पर उनकी आवाज़ कमजोर रही है।
यह "शर्म" धर्म की नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता के लालच की है, जिसने धार्मिक पहचान को पीछे धकेल दिया है।
आवाज़ उठनी चाहिए: यह समय चुप्पी का नहीं हाँ, इस त्रासदी पर तीखी आवाज़ उठनी चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय दबाव: संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय संगठनों (जैसे अफ्रीकी संघ) को युद्धरत पक्षों पर तुरंत और स्थायी युद्धविराम के लिए दबाव डालना चाहिए।
मानवता की मदद: ज़रूरतमंद लोगों तक जीवन-रक्षक सहायता, भोजन, पानी और चिकित्सा आपूर्ति पहुँचाने के लिए सुरक्षित गलियारे का निर्माण करना होगा।
न्याय और जवाबदेही: युद्ध अपराधों और सामूहिक अत्याचारों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) या किसी अन्य न्याय तंत्र के माध्यम से जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
मुस्लिम जगत की एकजुटता: मुस्लिम देशों के संगठन (OIC) और प्रमुख मुस्लिम नेताओं को एक सुर में इस हिंसा की निंदा करनी चाहिए और सुलह व शांति प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
अंत में बस यही कहना चाहूंगा कि सूडान का संकट केवल एक आंतरिक मुद्दा नहीं है; यह एक वैश्विक मानवीय संकट है। जब तक विश्व समुदाय और विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय इस पर चुप्पी नहीं तोड़ता, तब तक अल-फ़शर जैसे शहरों में मौत का यह तांडव जारी रहेगा। हर इंसान, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो, सम्मान और सुरक्षा का हक़दार है, और सूडान के लोगों के लिए इस हक़ को सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक नैतिक ज़िम्मेदारी है।

Sahi me bahut bura ho rha hai
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