शाहरुख खान: बॉलीवुड के बादशाह की 5 आइकॉनिक फिल्में
शाहरुख खान, जिन्हें हम सब 'किंग खान' और 'बॉलीवुड का बादशाह' कहते हैं, किंग खान भारतीय सिनेमा में पिछले तीन दशकों से राज कर रहे हैं। उनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती है, बल्कि दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ जाती हैं। शाहरुख खान ने रोमांस से लेकर शानदार ड्रामे और सामाजिक संदेशों तक, उन्होंने हर शैली में अपनी बेहतरीन अदाकारी साबित की है। वाकई में शाहरुख खान कमाल के अभिनेता है।
इस ब्लॉग में, हम शाहरुख खान की 5 ऐसी फिल्मों पर नज़र डालेंगे, जिन्होंने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर कमाई की, बल्कि हिंदी सिनेमा के इतिहास में बड़ी जगह भी बनाई।
दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (DDLJ) (1995)
यह आईकॉनिक फिल्म वो फिल्म है जिसने शाहरुख खान को 'रोमांस का किंग' बनाया है। YRF यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी आदित्य चोपड़ा की इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा में सबसे लंबे समय तक चलने वाली फिल्मों में अपना नाम बनाया। शाहरुख खान के ‘राज मल्होत्रा’ के रूप में निभाए गए किरदार ने सभी का दिल जीता, जो कि चार्मिंग, खुशमिजाज और ज़िम्मेदार था।
कहानी: राज (शाहरुख खान) और सिमरन (काजोल) की प्रेम कहानी है, जो यूरोप की यात्रा पर शुरू होती है। लेकिन सिमरन के पारंपरिक पिता (अमरीश पुरी) उसे अपने दोस्त के बेटे से शादी करने के लिए भारत ले जाते हैं। राज, पागलपन से सिमरन को भगा लेने के बजाय, उसके परिवार का दिल जीतकर शादी करना चाहता है। यह कहानी भारतीय संस्कृति और आधुनिक प्रेम के बीच खूबसूरती से संतुलित है।
शाहरुख खान का जादू: राज का चुलबुला अंदाज़, सिमरन के लिए उसकी अटूट मोहब्बत और 'बड़े-बड़े देशों में ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं, सेनोरिटा' जैसे डायलॉग आज भी युवाओं के मुंह से सुनाई देते हैं। इस फिल्म ने NRI रोमांस की परिभाषा दी और ये बताया कि सच्चा प्यार सभी बाधाओं को पार कर सकता है, खासकर जब बात परिवार की इज़्जत की हो। सच में बहुत शानदार फिल्म है मुझे भी बहुत पसंद है।
कुछ कुछ होता है (KKHH) (1998)
धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी करण जौहर की इस फिल्म ने दोस्ती, प्यार, और त्याग की एक खूबसूरत कहानी बताई है। ये 90 के दशक के यूथ कल्चर को दर्शाने वाली सबसे यादगार फिल्मों में से एक है।
कहानी: कॉलेज के दोस्त राहुल (शाहरुख) और अंजलि (काजोल)। राहुल को टीना (रानी मुखर्जी) से प्यार हो जाता है और वह उससे शादी कर लेता है। टीना की मौत के बाद, उसकी बेटी अपनी मां की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए राहुल को उसकी पुरानी दोस्त अंजलि से दोबारा मिलवाने की कोशिश करती है।
शाहरुख खान का जादू: राहुल का किरदार शुरू में बेफिक्र कॉलेज बॉय है, जो बाद में एक गंभीर पिता में बदलता है। 'प्यार दोस्ती है' का मंत्र शाहरुख के अंदाज़ में दर्शकों के दिलों में बस गया। उनका लुक, खासकर स्वेटशर्ट और कैप वाली स्टाइल, उस समय के युवाओं के लिए एक फैशन ट्रेंड बन गया था। इस फिल्म में शाहरुख और काजोल की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री भी बहुत अच्छी है।
देवदास (2002)
मेगा बॉलीवुड प्रा. लि. ओर रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट के द्वारा बनाई गई संजय लीला भंसाली की ये फिल्म शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के क्लासिक उपन्यास का भव्य और इमोशनल रूपांतरण है। ये भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी और visually stunning फिल्मों में से एक थी।
कहानी: देवदास (शाहरुख खान) और पारो (ऐश्वर्या राय) की बचपन की मोहब्बत, जो देवदास के विदेश से लौटने के बाद सामाजिक ऊँच-नीच के कारण पूरी नहीं हो पाती। दिल टूटने के बाद, देवदास शराब और एक तवायफ, चंद्रमुखी (माधुरी दीक्षित) के पास जाता है और धीरे-धीरे खुद को समाप्त कर लेता है।
शाहरुख खान का जादू: 'देवदास' के किरदार में शाहरुख खान ने उस प्रेमी की त्रासदी को बखूबी दर्शाया जो अपने प्यार को पाने में असफल हो जाता है और खुद को बर्बाद कर लेता है। उनके इंटेंस एक्सप्रेशंस और डायलॉग डेलिवरी ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं की कतार में खड़ा कर दिया। ये फिल्म सच में आपको रुला देंगी अगर आपका भी मोहब्बत में दिल टूटा है तो।
स्वदेश (2004)
यूटीवी मोशन पिक्चर्स के द्वारा बनाई गई आशुतोष गोवारिकर की ये फिल्म शाहरुख खान की सबसे महत्वपूर्ण और प्रशंसित फिल्मों में से एक है। इसमें एक मज़बूत सामाजिक और देशभक्ति का संदेश है, बिना किसी लाउड ड्रामे के।
कहानी: मोहन भार्गव (शाहरुख खान) नासा में कार्यरत एक सफल प्रोजेक्ट मैनेजर है, जो अपनी (कावेरी अम्मा) को खोजने के लिए भारत आता है। शाहरुख खान का ये किरदार भारत के एक गाँव में समय बिताते हुए, वह देश की गरीबी और समस्याओं से जुड़ाव महसूस करता है, और अपने शानदार करियर को छोड़कर देश की सेवा करने का फैसला करता है।
शाहरुख खान का जादू: 'मोहन भार्गव' के किरदार में शाहरुख एक सुलझे हुए, ज़मीनी और आदर्शवादी व्यक्ति के रूप में नजर आते हैं। उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा था, खासकर गाँव वालों की समस्याओं को समझने और उन्हें हल करने के दृश्यों में। इस फिल्म ने दिखाया कि सच्चा 'स्वदेश' प्रेम अपने देश के लिए कुछ करने में है, न कि बस विदेश में रहकर उसकी प्रशंसा करने में।
चक दे! इंडिया (2007)
यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी शिमीत अमीन की ये स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म भारतीय सिनेमा की सबसे प्रेरक और सफल फिल्मों में से एक है। इसने शाहरुख खान को फिर से एक गंभीर और सशक्त अभिनेता के रूप में दिखाया था।
कहानी: कबीर खान (शाहरुख) एक पूर्व पुरुष हॉकी कप्तान है, जिस पर पाकिस्तान के खिलाफ विश्व कप फाइनल में जानबूझकर हारने का आरोप लगता है। सात साल बाद, वह भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच के रूप में वापसी करता है, और समाज की उपेक्षा का सामना कर रही एक बिखरी हुई टीम को एकजुट करके उन्हें विश्व कप जीतने के लिए प्रेरित करता है।
शाहरुख खान का जादू: कबीर खान का किरदार शाहरुख के करियर के सबसे बेहतरीन किरदारों में से एक है। एक अपमानित, दृढ़ निश्चयी और सख्त कोच के रूप में उन्होंने अद्भुत प्रदर्शन किया। उनका ये किरदार शांत और संयमित था, जो गहरे जुनून से भरा हुआ था। फिल्म का संदेश देश से बड़ा कोई धर्म नहीं और उनका मशहूर डायलॉग "सत्तर मिनट, सत्तर मिनट हैं तुम्हारे पास" आज भी जोश भर देता है। ये फिल्म केवल हॉकी के बारे में नहीं थी, बल्कि जेंडर समानता, राष्ट्रीय गौरव और टीम वर्क के महत्व को भी दर्शाती थी।
ये 5 फिल्में शाहरुख खान के करियर के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाती हैं – 'राज' का शाश्वत रोमांस, 'राहुल' की भावुक दोस्ती, 'देवदास' की दुखद त्रासदी, 'मोहन' का सामाजिक विवेक और 'कबीर खान' का ज़बरदस्त जुनून।
आखिर में यही कहना चाहूंगा कि शाहरुख खान सिर्फ एक एक्टर नहीं हैं, वे एक भावना हैं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा के हर दर्शक वर्ग के दिलों में खास जगह बनाई है। उनकी फिल्मों में ऐसा जादू है जो हमें हंसाता है, रुलाता है, और सबसे महत्वपूर्ण, प्रेरित करता है। इन फिल्मों ने उन्हें सचमुच 'बॉलीवुड का बादशाह' बना दिया है।
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